नैमिषारण्य महात्म्य - Bhagwan ka mahatmya

Papermag-smooth

We publish mostly educational and devotional content. Like inspiration stories...

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Tuesday, June 29, 2021

demo-image

नैमिषारण्य महात्म्य

Responsive Ads Here


IMG_20210630_073342

नैमिषारण्य महात्म्य

एक बार की बात है नैमिषारण्य में 88 हजार ऋषियों ने मिलकर एक बहुत बड़ा सत्रयाग का आयोजन किया। उस सत्र याग में देश के कोने कोने से ऋषि मुनि तपस्वी अपने अपने शिष्यों के साथ वहां पधारें। उसी सत्र में संयोगवश व्यास जी के शिष्य सूत जी महाराज का आगमन हुआ। शौनकादिक ऋषियों ने उन्हें, परम तपोनिष्ट और सर्वशास्त्रज्ञ तथा व्यास जी के परम शिष्य जानकर सुंदर आसन प्रदान किया और सूत जी से निवेदन किया। हे तपोनिधान है! शास्त्रविद! आप हम सब लोगों को पुराण और धर्म शास्त्रों को श्रवण कराइए तथा साथ ही साथ आप हम लोगों को तीर्थ क्षेत्र ऊषाल आदि के महात्म्य को भी बतलाइए। शौनकादी ऋषियों के निवेदन पर सूत जी ने विविध पुराण, महाभारत, धर्मशास्त्र और तीर्थों के महात्म्य का गुणगान किया। तदनंतर ऋषियों ने नैमिषारण्य क्षेत्र के महात्म्य जानने की जिज्ञासा भी प्रकट की और कहा हे! पुराण सर्वशास्त्रविद आप हम सब लोगों को नैमिषारण्य महात्म्य को बतलाइए। इसका किस प्रकार उद्भव हुआ? यह तीर्थ क्यों सभी तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है? यहां की पपरिक्रमा का क्या महत्व है? आप कृपा करके यह सब बतलाइए। शौनकादिक ऋषियों की जिज्ञासा को सुनकर, सूत जी महाराज बोले! ठीक है, ऋषियों यदि आप सभी लोगों के मन में इस तीर्थ के महात्म्य को सुनने की जिज्ञासा है तो मैं आप लोगों को नैमिषारण्य के महात्म्य को बता रहा हूं। जैसा कि मैंने अपने गुरुदेव व्यास जी से इसके महात्म्य को सुना है तथा हमारे गुरुदेव को भी जिसका ज्ञान प्रजापति ब्रह्मा ने स्वयं दिया है। उसे आप लोगों लोग ध्यान से सुनिए। सूतजी बोले हे ऋषियों! प्राचीन काल में एक बार प्रह्लाद के मन में भी इस प्रकार की जिज्ञासा उठी थी कि इस लोक में कौन सा तीर्थ सर्वश्रेष्ठ है। इस जिज्ञासा की शांति के लिए वह अपने गुरुदेव शुक्राचार्य के पास पहुंचा और बोला गुरुदेव आप कृपा कर हमें यह बताएं कि इस लोक में कौन सा तीर्थ सर्वाधिक श्रेष्ठ है कौन आकाश में, कौन सा तीर्थ पाताल में सर्वाधिक श्रेष्ठ माना जाता है। प्रह्लाद के इस प्रश्न को सुनकर शुक्राचार्य जी बोले! भक्तराज प्रह्लाद! तुमने बहुत ही अच्छी बात पूछी है। मैंने जैसा कि सुना है वैसा तुम्हें बता रहा हूं। इस पृथ्वी पर नैमिषारण्य तीर्थ सबसे पवित्र और महान है। आकाश में पुष्कर तीर्थ और पाताल में चक्रतीर्थ को सर्वाधिक श्रेष्ठ कहा गया है

पृथिव्यां नैमिषम पुण्यं आकाशे तु पुष्करम।

चक्रतीर्थस्तु महाबाहो पतालतले विदुः।।

      यही नहीं यह नैमिष तीर्थ तीर्थों में भी उत्तम और अन्य क्षेत्रों में भी उत्तम क्षेत्र है। यह समस्त तीनों लोकों में विख्यात है। यह भगवान महादेव शिव का प्रिय स्थान है। तथा समस्त पाप तापों को दूर करने वाला है। इतना ही नहीं प्रह्लाद! पृथ्वी पर जितने भी तीर्थ हैं, वह सारे तीर्थ नैमिषारण्य में ही विद्यमान है। नैमिष तीर्थ तो भक्ति और मुक्ति दोनों ही देने वाला है। यह सभी तीर्थों के फल को प्रदान करने वाला है। नैमिषारण्य तीर्थ की इतनी बड़ी महिमा है कि जो व्यक्ति तीर्थ के लिए यदि घर से जाने के लिए प्रस्थान कर देता है, तो उसके आधे पाप तो उसी समय नष्ट हो जाते हैं। इस क्षेत्र में प्रवेश करते ही उसके सभी पाप छूट जाते हैं। शुक्राचार्य जी की इन बातों को सुनकर प्रह्लाद हर्ष से गदगद हो उठे और बोले गुरुदेव आज आपने हमें तथा हमारे सभी अपनों के लिए महान उपकारी तीर्थ को बताया है। हम आपके बहुत कृतज्ञ हैं। प्रह्लाद पुनः प्रश्न करते हुए बोले हे! ज्ञान निधान आपने तो हमें नैमिषारण्य के महात्म्य को बतलाया अब आप कृपा कर हमें यह बताइए कि इस नैमिष तीर्थ का उद्भव कैसे हुआ? यह तीर्थ क्यों सर्वाधिक पवित्र माना गया है? प्रह्लाद के इस प्रश्न को सुनकर शुक्राचार्य जी बोले भक्तवर! यह तुमने मुझसे बड़ा ही तर्कसंगत प्रश्न किया है। ठीक है मैं तुम्हें नैमिषारण्य के नामकरण की कथा बता रहा हूं ध्यान से सुनो नैमिषारण्य के नामकरण के संदर्भ में, मैं जो भी बता रहा हूं शास्त्रों में कई तर्क प्राप्त होते हैं इसलिए ध्यान से सुनो!

        एक बार सभी देवगण भगवान ब्रह्मा के पास गए और बोले भगवान मनुष्य को कहा और किस प्रकार मुक्ति मिल सकती है। तब भगवान ब्रह्मा ने कहा ठीक है। तुम लोग हजार वर्ष तक भगवान शंकर की तपस्या करो। सत्र के अंत में तुम्हारे पास मेरे द्वारा भेजे गए वायु देव वहां आएंगे और वही तुम्हें लोगों को कल्याण के उपाय बताएंगे। 1000 वर्षों तक तुम लोग जहां सत्र को करोगे उस पवित्र स्थान को मैं तुम्हें बताएं देता हूं। ऐसा कहकर प्रजापति ब्रह्मा ने एक मनोमय चक्र का सृजन किया और कहा कि इस सत्र की नैमि जहां पर विशीर्ण होगी, वह देश तपस्या के लिए शुभ होगा। ऐसा कहकर प्रजापति ब्रह्मा ने महादेव शिव को प्रणाम कर, वह चक्र छोड़ दिया। वह ऋषि मुनि प्रसन्न चित्त होकर उस पत्र के पीछे पीछे चल पड़े। वह मनोमय चक्र समस्त तीनों लोकों के विचरण करता हुआ एक सुंदर स्वादिष्ट जल वाले किसी वन में गिरा। जहां उस चक्र की नैमि विशीर्ण हुई। वहीं वन नैमिष नाम से विख्यात हुआ, जो अनेक यक्ष गंधर्व विद्याधरों से युक्त था।

        भक्तवर प्रहलाद यह तो रही शिवपुराण के अनुसार नैमिष की उत्पत्ति की कथा। अब मैं तुम्हें देवी भागवत में वर्णित नैमिषारण्य के नामकरण की कथा सुना रहा हूं, ध्यान से सुनो- सूतजी ने ऋषियों! को संबोधित करते हुए कहा- हे मुनीश्वर! एक बार की बात है कि नैमिषारण्य के सभी ऋषि मुनि गण कलिकाल के भय से ब्रह्मा के पास जाकर बोले पितामह हम सभी नैमिषारण्यवासी कलिकाल से भयभीत हैं अतःएव आप कोई उपाय बताइए। तब ब्रह्मा ने उन्हें मनु में चक्र को देकर आदेश दिया कि तुम सब लोग भी इस चक्र के पीछे पीछे जाओ। जहां पर इस चक्र की नेमी शीर्ण हो जाए, वह देश पवित्र समझना। वहां पर कलि का कोई भी प्रभाव नहीं होगा। सतयुग आने तक तुम लोग वहीं निवास करो। ब्रह्मा के वचन को सुनकर सभी मुनि गण चक्र के पीछे पीछे चल दिए। वेग पूर्वक घूमता हुआ, वह चक्र समस्त लोकों में विचरण करते हुए इस वन में शीर्ण अर्थात धंस गया। अतः एव तभी से वह नैमिष के नाम से विख्यात हुआ। यह सभी क्षेत्रों में परम पावन हैं।

       सूत जी पुनः आगे ऋषियों से बोले! वराह पुराण में नैमिष नामकरण की कथा भिन्न रूप से कही गई है। तब ऋषियों ने कहा- हे पुराणविद! आप हमें वह दूसरी कहानी की बताइए जिससे इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा। तब सूत बोले- प्राचीन काल में दुर्जय नाम का एक बड़ा ही पराक्रमी असुर था, जिसके पराक्रम के आगे किसी की भी कुछ ना चलती थी। सभी के अत्याचार से त्रस्त थे। अंत में आपस में विचार कर लोग भगवान विष्णु के पास पहुंच गए। शरणागत पालक विष्णु देव ने देवों का अभिप्राय समझ कर उसको मारने का वचन दिया। इस प्रकार कालचक्र के समान अपने सुदर्शन चक्र को उन्होंने दुर्जय नामक दानव के ऊपर छोड़ दिया। जिसने निमेष (पल भर) मात्र में ही दुर्जय तथा उसकी सारी आसुरी सेना को भस्म कर दिया तब इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने गौरमुख मुनि से कहा - चूंकि इस अरण्य विशेष में दानवों को नैमिष मात्र में ही भस्म कर दिया है अतःएव यह अरण्य नैमिषारण्य के नाम से जाना जाएगा।


इस प्रकार नैमिषारण्य का नामकरण हुआ-- आगे की कहानी ले लिए जुड़े रहे

Http://Bhagwankamahatmya.blogspot.com


रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी--

https://youtu.be/4dgFkPaKSaU

No comments:

Post a Comment

कृपया दी गई रचनाओं के बारे में अपने सुझाव दे-

Post Bottom Ad

Pages