एक हाथीमरा आत्मा यमराज कै पास गयी। यमराज ने हाथी से पुछा- तुम आदमी के बस में केसे हुए? हाथी ने कहा मेरे आदमी कि आत्मा को ही देखकर डंड देते हो कभी जिदा आदमी से पाला पडे तो देखना यमराजजी को बात चुभगयी तुरंत दुतों से कहा जल्दी से जावो और जिवित आदमी को यहां लावो। यमदुत गयै एक सेठजी को लाये। सेठजी ने रस्तै मैं आतै वक्त कागज पर लिखना शुरू किया। सिद्धैश्री यमराजजी को लिखी बैकुंठ पूरी से नारायणदेव का जयश्री कृष्णा मालुम होवे, आगै ये बंदा जो आपकै पास आ रहा इस को आपके आसनपर बिठा दैवै व इसकी आज्ञा का पालन करैं हस्ताक्षर नारायण दैव। उधर यमपुरी आतै ही सैठजी को नीचे उतार दिया। सेठजी ने वो पत्र निकाला, पत्र पढ़कर यमराजजी नै अपनै आसन पर सेठजी को बिठा दिया।
अब जो भी मर्तक आत्मा आती तो सैठजी कहते "स्वर्ग में भैज दो", यमराजजी कहतै यै पापी हैं, तो सेठजी कहतै आज्ञा का पालन करो, उधर स्वर्ग में स्थान नही बचा तो नारायणदेव ने विचार किया यमराज पागल हो गया चलकर दैखना चाहिए। प्रभु स्वयं पधारै देखा और कहा यमराजजी यै क्या हो रहा है। यमराजजी नै वो कागज़ दिखाया मै तो आपकी आज्ञा का पालन कर रहा हूं। प्रभु ने कागज पढ़ा और कहा आपने मैरै साईन नहीं दैखै। इतनै मैं हाथी बोला यमराज जी! कैसै हुयै आदमी कै बस में!
यमराजजी नै अपनै दुतों से कहा तुरन्त प्रभाव से ईसको पृय्वी पर पहुंचावो। आज के बाद जिवित आदमी को कभी-भी मत लाना ।
पंडित भेरुलाल तिवाड़ी गुरलां मैवाड
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