श्री हनुमान चालीसा (हिन्दी भावार्थ सहित) - Bhagwan ka mahatmya

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Saturday, July 10, 2021

श्री हनुमान चालीसा (हिन्दी भावार्थ सहित)

श्री हनुमान चालीसा

(हिन्दी भावार्थ सहित)


दोहा- श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि ।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि ।। (क)

श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूली से अपने मनरूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,) देने वाला है।


दोहा- बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार ।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश बिकार ।। (ख)

हे पवनकुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।


॥ चौपाई ॥


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।1।।

श्री हनुमान जी! आप की जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे! कपीश्वर आपकी जय हो। तीनों लोकों (स्वर्गलोक, भूलोक और पाताल लोक) में आपकी कीर्ति है।


रामदूत अतुलित बल धामा। 

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥

आप श्री राम के दूत पवन सुत अंजनीनन्दन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है। 


महावीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी ।।3।।

हे महावीर बजरंग बली ! आप विशेष पराक्रम वाले हैं। आप बुरी बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छी बुद्धि वालों के साथी, सहायक हैं।


कंचन बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।4।।

आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले में बालों से सुशोभित हैं।


हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजै ।

काँधे मूँज जनेउ साजै ॥5॥

आपके हाथ में वज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज की जनेऊ की शोभा है ।


शंकर सुवन केसरी नन्दन ।

तेज प्रताप महा जग वन्दन ।।6।।

हे शंकर के अवतार ! हे केसरी नन्दन ! आपके पराक्रम और महान् यश की संसार भर में वन्दना होती है।


विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर ॥7॥

आप प्रकाण्ड विद्यानिधान हैं, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्रीराम काज करने के लिए उत्सुक रहते हैं।


प्रभु चरित्र सुनबे को रसिया।

राम लखन सीता बन बसिया ॥8॥

आप प्रभु श्रीराम के चरित्र (कथा) सुनने के रसिया हैं। श्रीरामजी, लक्ष्मणजी और सीताजी को मन में बसाने वाले हैं।


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । 

विकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥

आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीताजी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।


भीम रूप धरि असुर संहारे ।

रामचन्द के काज संवारे ।।10।।

आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र के उद्देश्यों को सफल कराया ।


लाय संजीवन लखन जियाये ।

श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।।11।।

आपने संजीवन बूँटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया ।


रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई ।।12।।

श्री रामचन्द्र जी ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो ।


सहस बदन तुम्हरों जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।13।।

श्रीराम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।


सनकादिक ब्रह्मादि मुनिशा। 

नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

कबि कोबिद कहि सकेँ कहाँ ते ।।15।।

श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार, आदि मुनि, ब्रह्मा आदि देवता, नारदजी, सरस्वती, शेषनागजी, यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान, पण्डित या कोई भी आपके यश का पूर्णत: वर्णन नहीं कर सकते।


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

 राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।16।।

आपने सुग्रीवजी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया जिसके कारण वे राजा बने।


तुम्हारों मंत्र विभीषन माना ।

लंकेश्वर भये सब जुग जाना ॥17॥

आपके उपदेश का विभीषणजी ने पालन किया, जिससे वे लंका के राजा बने इसको सब संसार जानता है।


जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ।

लील्यों ताहि मधुर फल जानू ॥18॥ 

जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगें। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया ।


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।।19।।

आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को लाँघ लिया इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।


दुर्गम काज जगत के जेते । 

सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते ।।20।।

संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हों, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं।


राम दुआरे तुम रखवारे ।

होत ना आज्ञा बिनू पैसारे ।।21।।

श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आप की आज्ञा के बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता। (अर्थात् श्रीरामकृपा पाने के लिए आपकी प्रसन्नता आवश्यक है ।


सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥

जो भी आपकी शरण में आते हैं उन सभी को आनन्द प्राप्त होता है। और जब आप रक्षक तो फिर किसी का भी डर नहीं रहता है।


आपन तेज सम हारो आपे। 

तीनहु लोक हांकते कांपे ।।23।।

आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता। आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते हैं।


भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।

महाबीर जब नाम सुनावै ॥24॥

जहाँ 'महाबीर' हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है वहाँ भूत पिशाच पास भी नहीं फटक सकते ।


नासै रोग हरें सब पीरा ।

जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥25॥

हनुमान जी! आपका निरन्तर जप करने से सब रोग चले जाते हैं और पीड़ा मिट जाती है।


संकट तें हनुमान छुड़ावे ।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥26॥

हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आप में रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते हैं।


सब पर राम तपस्वी राजा ।

तिन के काज सकल तुम साजा ॥27॥

तपस्वी राजा रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।


और मनोरथ जो कोई लावै ।

सोई अमित जीवन फल पावै ॥28॥

जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है, जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।


चारों जुग परताप तुम्हारा ।

है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29॥ 

चारों युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) में आपका यश फैला हुआ है, जगत् में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।


साधु सन्त के तुम रखवारे ।

असुर निकंदन राम दुलारे ॥30॥

हे श्रीराम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं।


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।

अस बर दीन जानकी माता ॥31॥

आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ (सब प्रकार की सम्पत्ति) दे सकते हैं। अष्ट सिद्धियाँ यथा :

1) अणिमा- जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।

2) महिमा- जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना लेता है।

3) गरिमा जिसमें साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।

4) लघिमा- जिसमें जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।

5) प्राप्ति- जिसमें इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।

6) प्राकाम्य- जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।

7) ईशित्व- जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।

8) वशित्व- जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।

नौ निद्धियां-पद्य, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, खर्व आदि ।


राम रसायन तुम्हारे पासा ।

सदा रहो रघुपति के दासा ॥32॥

आप निरन्तर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए 'राम-नाम' औषधि है।


तुम्हारे भजन राम को पावै ।

जनम जनम के दुख बिसरावै ॥33॥


अन्त काल रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरि-भक्ति कहाई ।।34।।

आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते हैं और जन्म के दुःख दूर होते हैं और अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम को जन्मान्तर जाते हैं और यदि फिर जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीराम भक्त कहलायेंगे।


और देवता चित्त न धरई ।

हनुमत सेइ सर्व सुख करई ।।35।।

हे हनुमान जी ! जो आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती। 


संकट कटै मिटै सब पीरा ।

 जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।36।।

हे वीर हनुमान जी ! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब पीड़ा मिट जाती हैं।


जय जय जय हनुमान गोसांई।

कृपा करहु गुरुदेव की नांई ॥37।।

हे स्वामी हनुमान जी ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर श्री गुरुजी के समान कृपा कीजिए।


जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बँदि महासुख होई ।।38।।

जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छूट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा ।

होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।39।।

भगवान् शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया इसलिए वे साक्षी हैं कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।


तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ।।40।।

हे नाथ हनुमान जी ! तुलसीदास ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।


॥ दोहा ॥


पवन तनय संकट हरन। मंगल मूरति रूप ।

राम लखन सीता सहित । हृदय बसहु सुर भूप ॥2॥

हे संकटमोचन पवनकुमार ! आप आनन्द मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज ! आप श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण सहित मेरे में निवास कीजिए।


।। सियावर रामचंद्र जी की जय ।।

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